एकटा ललौन

शनिबारीय साहित्य : कविता

लेखक : राेशन जनकपुरी

१)
एकटा ललौन, खूब ललौन सुरुज
दिन भइर लड़ैत
सँझुका असमंजसमे
थकित, क्लान्त
मुदा गौरवमय लालिमा नेने
ढइल गेल ।
देखबै अहाँ
काइल्ह भोढ़ढियामे
राइतके छाती चीर क’
उगत फेर
सुरुज

(२)
मृत्यु सत्य नइँ अइ महाेदय,
मृत्य बस सत्यके अंशमात्र अइछ,
सत्य त जीवन अइछ
समयके छातीमे गहीँर
बहुत गहीँर जइर छाेडैत
आ बढैत
हरेक बेर मृत्युके पार करैत ।
आउ, एहि आसक एकटा दीप बारी
मन मनमे एकटा दीप बारी
आसक
विश्वासक
आ जीवनक जीतक ।

(३)
ओना ई अखन तक
पुराने सन बुझाइत अइछ ,
आउ , सब केओ मिलिक’
एकरा , साँचेके
नवका बनाबी ।
नववर्षके शुभकामना ।

जन बिहानी

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